दयानन्द त्रिपाठी

जिस धरा पर जन्म लिया 


उसका कर्ज चुकाना बाकी है


मृत्यु वरण से पहले ही 


कुछ तथ्य बताना बाकी है।


 


चुपचाप देख रहे हैं हम सब


मानव बनना बाकी है


फूलों के पहरों पर देखो


सांपों की पहरेदारी है।


 


विश्वास ठगा जा रहा जहां


रिश्ते की दिवारों में


निस्सीम प्रेम की प्रासंगिकता


अब जीवन पर भारी है।


 


सम्बंध बड़े तो होते हैं


पर दु:ख में साथ निभाते तो


दु:ख में साथ नहीं है तो


ऐसे सम्बंध तोड़ना बाकी है।


 


तेईस सितंबर 1908 को जन्में थे जो


राष्ट्रकवि दिनकर सा चमक गये


साहित्य पद्यभूषण ज्ञानपीठ पुरस्कार ले


वीररस के हुंकारों से रश्मिरथी सा दमक गये।



 -दयानन्द त्रिपाठी 


महराजगंज उत्तर प्रदेश।


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