डॉ. रामबली मिश्र

शिक्षक दे बस शिष्य को, मन से सुंदर ज्ञान।


शिक्षक अपने धर्म से, बनता सदा महान।।


 


शिक्षक हो कर जो नहीं, करता शिक्षण-कर्म।


समझो वह नित कर रहा, पापाचार अधर्म।।


 


सहज समर्पण भाव से, शिक्षक महा सुजान।


अच्छे शिक्षक को मिलत, आजीवन सम्मान।।


 


पढिये और पढ़ाइये, यह शिक्षक का धर्म।


पढ़ता-लिखता है नहीं, जो वह करत अधर्म।।


 


शिक्षक पावन वृत्ति है,शिक्षक पावन भाव।


शिक्षक सुंदर धर्म है, शिक्षक दिव्य स्वभाव।।


 


शिक्षक बनना अति कठिन,वह तपसी विद्वान।


घोर तपस्या का सुखद, फल शिक्षक-भगवान।।


 


निष्ठा अरु कर्तव्य ही, शिक्षक का है धर्म।


कामचोर शिक्षक सदा, करता घोर अधर्म।।


 


कक्षा में जाते नहीं, राजनीति से प्रीति।


ऐसे शिक्षक कर रहे, सतत अधर्म अनीति।।


 


छिपी हुई है सर्जना, पढ़ना-लिखना काम।


सदा काम से काम जो, उस शिक्षक का नाम।।


 


छात्र हितैषी गुरु सदा, करता रोशन नाम।


अपना आसन सिद्ध कर, रचता सुंदर धाम।।


 


गुरु वशिष्ठ संदीपनी, का यह पावन स्थान।


हर शिक्षक सत्कर्म से, पा सकता सम्मान ।


 


शिक्षक बनना है अगर, अर्जन कर शिव ज्ञान।


गहन तपस्या से बनो, अति विनम्र विद्वान।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511