डॉ. रामबली मिश्र

शुभ कारज को बहुत शीघ्र कर।


रुको नहीं अविलंब उसे कर।।


 


अवरोधी तत्वों से बचना।


यह अत्युत्तम बौद्धिक वचना।।


 


वाधाएँ अक्सर आती हैं।


काम विगाड़ चली जाती हैं।।


 


शुभ को अति जल्दी जो करता।


वही बहाले चलता-फिरता।।


 


शुभ कारज को नहीं टालना।


यथा शीघ्र का नियम पालना।।


 


दृढ़ प्रतिज्ञ जो नियमबद्ध है।


वही सफल इंसान बुद्ध है।।


 


जो करता आलस्य हमेशा।


देता रहत गलत संदेशा।।


 


शुभ कार्यों को परित्याग मत।


इस पर सारा जग है सहमत।।


 


जो करता शुभ की रक्षा है।


वही मंत्रमय शिव दीक्षा है।।


 


जो चलता शुभ-शीघ्र पंथ पर।


गढ़ता बौद्धिक मानव रचकर।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


[24/09, 11:26 am] +91 98384 53801: *शीर्ष*


*(चौपाई ग़ज़ल)*


 


बहुत कठिन है ऊपर चढ़ना।


समझ असंभव शीर्ष पहुँचना।।


 


जोर लगाता मानव हरदम।


किन्तु कठिन है वहाँ पहुँचना।।


 


करता इक एड़ी-चोटी है।


पर मुश्किल है शीर्ष पहुँचना।।


 


सिर्फ शीर्ष पर अंतिम सत्ता।


नहिं संभव है अंतिम बनना।।


 


अंतिम सत्ता का वंदन कर।


पूजन और निवेदन करना।।


 


भक्ति भाव में शीर्ष छिपा है।


भक्ति भाव से वहाँ पहुँचना।।


 


और दूसरा नहिं उपाय है।


लोक शीर्ष बेकार समझना।।


 


लोक शीर्ष क्षणभंगुर वंदे।


इसका मिलना भी क्या मिलना।।


 


जो मिलकर भी होत संसरित ।


उसका मिलना या ना मिलना।।


 


अंतिम शीर्ष ब्रह्म की दुनिया।


बनकर भक्त विचरते रहना।।


~~~~~~~~~~~~~~


हंसवाहिनी का दर्शन कर


 


परम अलौकिक ज्ञान समंदर।


हंसवाहिनी का दर्शन कर।।


 


विद्या महा तपस्विनि योगिनि।


ज्ञानवती का शुभ स्पर्शन कर।।


 


सहज अमृता अमी अमर रस।


खुश रहना अमृत रस पी कर।।


 


लिपटो माँ के प्रिय चरणों में।


सदा झुकाये शीश चरण पर।।


 


भावुकता का वस्त्र लपेटे।


माँगो विनयशीलता का वर।।


 


हंसवाहिनी के दर्शन से।


सद्विवेकिनी बुद्धि प्रखर कर।।


 


वीणपाणी संगीता माँ।


मधुर राग का आस्वादन कर।।


 


पुस्तक लिखना पढ़-पढ़ कहना।


रहना मस्त पवित्र ग्रन्थ पर।।


 


माँ का आशीर्वाद माँगना।


दे देंगी माता खुश हो कर।।


 


बहुत कृपालू करुणामृत माँ।


माँ चरणों का नित दर्शन कर।।


 


आँखों में जिसके प्रेमामृत।


प्रेममयी का सदा भजन कर।।


 


दुर्दिन में जो साथ निभातीं।


उस माँ श्री को सदा नमन कर।।


 


नहीं छोड़तीं कभी भक्त को।


कर न्योछावर खुद को माँ पर।।


 


करते जा माँ पर कविताई।


माँ सरस्वती का अर्चन कर।।


###############


थोड़ा.....।


 


थोड़ा ही चल।


पर अच्छा चल  


 


थोड़ा ही कर।


पर अच्छा कर।।


 


थोड़ा ही खा।


पर अच्छा खा


 


थोड़ा बोलो।


अच्छा बोलो।।


 


थोड़ा सोचो।


सुंदर सोचो।।


 


थोड़ा मिलना।


दिल से मिलना।।


 


थोड़ा करना।


मन से करना।।


 


थोड़ा दौड़ो।


प्रातः दौड़ो।।


 


थोड़ा पढ़ना।


मन से पढ़ना।।


 


थोड़ा लिखना।


सुंदर रचना।।


 


थोड़ा रचना।


दिल की कहना।।


 


थोड़ा कहना।


मीठा बनना।।


 


थोड़ा भोजन।


अच्छा व्यंजन।।


 


थोड़ी बातें।


सार्थक बातें।।


 


थोड़ा चढ़ना।


बनकर रहना।।


 


थोड़ा चलकर।


चहक-चहक कर।।


 


थोड़ा नर्तन।


मादक थिरकन।।


 


थोड़ा मचलन।


दिल का पिघलन ।।


 


थोड़ा सावन।


शिव मन भावन।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511