डॉ वीके शर्मा

तुम तो हो प्रिय दुश्मन मेरे 


तुम ही बसते तन मन मेरे 


तृष्णा बनकर क्यों हो जलाते 


क्यों तपते और हमें हो तपाते 


कैसे हो तुम साजन मेरे


तुम तो हो प्रिय दुश्मन मेरे ||-1


 


देख रहे हो यूं नजरों से


लगते क्या हम बेकद्रों से


हम तो भक्त परायण तेरे


तुम तो हो प्रिय दुश्मन मेरे ||-2


 


पाया है जो दिया है तुमने 


किया ग्रहण क्या त्यागा हमने 


यह तो है सब साधन तेरे


तुम तो हो प्रिय दुश्मन मेरे ||-3


 


तुम से वचन है तुम से लगन है 


तुमसे तन है तुम से ही मन है 


तुम ही सर्व सनातन मेरे 


तुम तो हो प्रिय दुश्मन मेरे ||-4


 


डॉ वीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9450433511, 9919256950