डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चंदन


चंदन शीतल चंद्र सम,रुचिकर लिए सुगंध।


विषधर का यह प्रिय विटप,पर न गरल-संबंध।।


 


चंदन-शीतल लेप से,घटे मानसिक ताप।


संत लगा चंदन-तिलक,करें ईश का जाप।।


 


चंदन शोभा भाल की,करता दिव्य स्वरूप।


मुख-मंडल आभा बढ़े,औषधि एक अनूप।।


 


दे सुगंध दुर्गंध को,चंदन देव समान।


बनकर व्याल-निवास यह,दे शीतल अनुदान।।


 


जाती चंदन-लेप से,विरही हिय की पीर।


यह अमोघ औषधि बने,जब हो हृदय अधीर।।


 


भक्त-संत-प्रेमी सदा,इसका करें प्रयोग।


शुद्ध रखे परिवेश बस,चंदन का उपभोग।।


 


रक्षा चंदन विटप की,सब जन का है धर्म।


इससे बढ़कर इस समय,और नहीं है कर्म।।


          © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


               9919446372


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