डॉ0 हरि नाथ मिश्र

द्वितीय चरण(श्रीरामचरितबखान)-44


भरत लेइ तब तिरहुति राजा।


अवध चले निज साजि समाजा।।


   प्रथम दिवस कहँ साँझ मझारे।


   पहुँचे सबहीं जमुन-किनारे।।


रात्रि सयन करि निज-निज डेरा।


उठे सबहिं जब भवा सबेरा।।


     सबहिं नहाय जमुन-जलधारा।


     पूजन करि गे जमुना पारा।।


संगम-तट जब पहुँचे सबहीं।


पूजन-अर्चन बिधिवत करहीं।।


     ऋषि-आश्रम रहि अच्छय बटहीं।


      राज निषाद लेइ पुनि बढ़हीं।।


जथा-जोग गुह करि सभ सेवा।


सुरसरि पार करा बिनु खेवा।।


     पा असीष लौटा निज ग्रामा।


     श्रृंगबेरि रह जाकर नामा।।


साँझ परे सभ सई-किनारे।


सयन करहिं निज डेरा डारे।।


     अति प्रातः सभ करि अस्नाना।


      पूजन करहिं लगा निज ध्याना।।


भोजनादि करि कीन्ह पयाना।


निज-निज साधन जे बिधि जाना।।


     डूबत-डूबत वहि दिन सबिता।


     पहुँचे सभ जहँ गोमति सरिता।।


करि असनान गोमती-नीरा।


गयउ सभें पुनि तमसा-तीरा।।


    तमसा पार करत दिन चारहिं।


    जनक लेइ सभ अवध पधारहिं।।


दोहा-अवध पहुँचि मिथिला नृपति,रहहिं उहाँ दिन चार।


         नगर-प्रसासन करि उचित,लौटे पुनि निज द्वार।।


       रानी-भरत-सुमंत मिलि, बिदा करहिं सिय-मातु।


        निज समाज सँग नृप तबहिं,चले जनक सिय-तातु।।


       तब बसिष्ठ व सुमंतु मिलि, रानिन्ह भरत समेत।


        आपस मा समुझन लगे,कस पुर काजु भवेत।।


                          डॉ0हरि नाथ मिश्र


                            9919446372


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