डॉ0 हरि नाथ मिश्र

भारत-गौरव हिंदी


करें सभी सम्मान जगत में,


हिंदी-भाषा रानी का।


बोधगम्यता और सरलता-


सहज प्रवाह-रवानी का।।


 


भारतेंदु ने सबसे पहले,


इसका है गुणगान किया।


हिंदी अपना गौरव कहकर,


इसका है सम्मान किया।


यही देश की प्राणवायु है-


उन्नति-स्रोत कहानी का।।


 


बनकर स्नेह सूत्र ही हिंदी,


रखे सभी दिल को जोड़े।


प्रेम-दीप की ज्योति जलाकर,


इर्ष्या-तम का रुख मोड़े।


ज्ञान-कोष अक्षुण्ण है हिंदी-


भाषा हिंदुस्तानी का।।


 


आन-बान यह शान देश की,


मर्यादा है भारत की।


यह विकास-सोपान प्रथम है,


वाणी ज्ञान-विशारद की।


हर जिह्वा पर चढ़कर बोले-


मंत्र-सूत्र इव ज्ञानी का।।


 


सीखें और सिखाएँ सबको,


हिंदी-भाषा-बोली को।


अभी विदेश- देश में जा कर,


अपने सब हमजोली को।


कर विकसित नव शब्द-कोष को-


जो सहाय विज्ञानी का।।


 


'क' से कहना कमल व कबूतर,


'ख' से कहना है खरगोश।


'ग' से बनते गणेश देवता,


'घ' से घड़ी समय-उद्घोष।


'अ'-'आ' से अमरूद व आम हों-


कोमल बोल सुहानी का।।


      बोधगम्यता और सरलता,


      सहज प्रवाह-रवानी का।।


      करें सभी सम्मान जगत में-


      हिंदी-भाषा रानी का।


                    © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


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