डॉ0 रामबली मिश्र

आत्मीयता


 


आत्म भाव अतिशय मधु सुंदर ।


लहराता है प्रेम समंदर ।।


 


अन्तर्मुखी बाह्य अनुरागी।


शांत स्वभाव सहज शिवशंकर।।


 


देखत खुद में सकल सृष्टि को।


ब्रह्मरूपमय ज्ञान धुरंधर।।


 


आत्मीयता अति प्रिय शीतल।


सुखद अमृता सभ्य धरोहर।।


 


सदा बूँद में सिंधु बहत है।


आत्मरूपमय दिव्य सरोवर।।


 


एक तत्व में बृहद तत्व है।


एकरूपमय आत्म मनोहर।।


 


परम अथाह चाह समरसता।


रसाकार संसार सुमंतर ।।


 


मस्त फकीरी अमर जीवनी।


संतहृदय शुचि भाव स्वतंतर ।।


 


बँधा विश्व है आत्म केन्द्र से।


बाह्य शून्यमय आत्म गजेन्दर।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511