दुर्गा प्रसाद नाग

हिंदी हिय का मूल है,


हिंदी सुख की खान।


हिंदी का सम्मान कर,


होते मनुज महान।।


 


इसलिए अगर सुख पाना है, तो हिंदी का सम्मान करो।


 


जो नाम अमर कर जाना है,


तो हिंदी का सम्मान करो।।


 


कृति में वह व्यक्ति उठा ऊंचा,


जिसने हिंदी का मान किया।


 


हो गए अमर वे प्रेमचंद,


जिसने इसका सम्मान किया।


 


पूर्व काल के वे बालक जो,


हिंदी की विधा संजोते थे।


 


हरिश्चन्द्र, कविवर दिनकर,


मैथिली से ज्ञानी होते थे।।


 


थे पंडित सूर्यकांत भी तो,


हिंदी ने "निराला" बना दिया।


 


और बच्चन जी की हिंदी ने,


सच में मधुशाला बना दिया।।


 


भारत की नव किशोर पीढ़ी,


निज गौरव भूला जाता है।


 


अपनी भाषा से विमुख हुआ,


पाश्चात्य विषय अपनाता है।


 


इसलिए देश यह सदियों से,


हो रहा रात दिन गारत है।


 


अब तो बस नाम ही भारत है,


भारत अब नहीं वो भारत है।।


 


दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा - खीरी


मोo- 9839967711


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