प्रिया चारण

 में लिखने का शोक रखती हूँ 


 


में लिखने का शोख रखती हूँ ,,।


पर क्या? लिखूं , लिखने से डरती हूँ,,।


मैं अपने कुछ जज़्बात अपने अंदर ही रखती हूँ ।


ल मैं लिखने से डरती हूँ , पर अंदर ही अंदर ,


सबसे छिपकर छिपाकर इतिहास रचती हूँ ।


 


मैं लिखने का शोक रखती हूँ ,,।


पर क्या ?लिखूं लिखने से डरती हूँ ।


मैं हर रोज़ उडान तो भरती हूँ, पर ज़माने से डरती हूँ ,,,।


 


क्या कहेंगे लोग, यहाँ सबकी है ,यही सोच


इस सोच से हर शाम बिखरती हूँ ।।


 


में लिखने का शोख रखती हूँ,


पर क्या? लिखूं लिखने से डरती हूँ ,,।।


मैं खुदको हार कर भी, 


दुनिया को जीतने का शोख़ रखती हूँ ।


नन्ही चिड़िया सी हुँ , घोसले को खोने से डरती हूँ ,,,


फिर भी दाना लेने को हर सवेरे उडान भरती हूँ ।।


 


मैं लोखन का शोख़ रखती हूँ 


पर क्या? लिखूं लिखने से डरती हूँ ।।


 


प्रिया चारण


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