गुरू है ज्ञान का सागर गुरू का मान तुम कर लो।
झुका है शीश चरणों मे प्रतिष्ठित भान तुम कर लो ।।
करो सम्मान तुम गुरू का सदा सम्मान पाओगे।
करो शिरोधार्य गुरू शिक्षा अमिट पहचान तुम कर लो ।।
किया सम्मान यदि गुरू का कभी झुकने ना पाओगे ।
विषम कितनी भी रहें हों कभी रुकने ना पाओगे ।।
अगर चाहे मिटाना भी कभी तुमको जहाँ सारा।
जलेगा ज्ञान का दीपक कभी मिटने ना पाओगे ।।
गुरू वह जलता दीपक है सदा जो ज्ञान हित जलता ।
मिले जिसको शरण गुरू की सदा वह प्रगति पथ चलता ।।
नमन वंदन करूँ गुरू का शब्द के पुष्प से अर्चन।
ये ममता की वह छाया है जीवन जिसमें सुखद पलता ।।
शिवांगी मिश्रा
धौरहरा लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश
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