सुनील कुमार गुप्ता

कहाँ-साथी होगा तेरा?


यौवन की दहलीज़ पर साथी,


भटका फिर जो कदम तेरा।


कैसे-मिलेगी मंज़िल साथी?


कहाँ -थमेगा कदम तेरा?


देख पल पल सपने सुहावने,


कहाँ-होगा साथी तेरा?


यथार्थ धरातल पर जो देखा,


साथी संग चला न मेरा।।


मंगल-अमंगल हो न हो यहाँ,


साथी साथ निभाये तेरा।


साथी-साथी कहते जिसे फिर,


कहाँ-साथी होगा तेरा?"


 


 सुनील कुमार गुप्ता


 


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