जीवन में
इतनी न होती चाहत मन में,
जो पूरी होती न जीवन में।
भटकन ही भटकन होती यहाँ,
शांति न होती कभी जीवन में।।
त्यागमय जीवन भी फिर यहाँ,
दे न पाता कोई सुख मन में।
स्वार्थ संग डूबा साथी यहाँ,
दे न पाता वो अपनत्व जग में।।
संबंधों की गरिमा संग जो,
चलते साथी संग जीवन में।
चाहत कोई रहती न साथी,
अधूरी होती जो जीवन में।।
सुनील कुमार गुप्ता
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