सुनील कुमार गुप्ता 

किसे पता था


"किसे पता था जीवन में,


साथी ऐसा दिन भी-


देखने को आयेगा।


अपने-अपने होगे,


फिर भी-


अपनत्व को तरस जायेगा।


अपने ही घर में साथी,


कैद हो कर -


जीवन बितायेगा।


घर से बाहर जाते हुए भी,


मन पल पल-


डर से घबरायेगा।


सुरक्षित रह कर भी तो,


कोरोना का बढ़ता प्रकोप-


हर किसी को डरायेगा।


अशांति ही अशांति छाई,


इस जीवन में-


कब-तक मन को भरमायेगा?


किसे पता था जीवन में,


 


 साथी ऐसा दिन भी-


देखने को आयेगा।।"


 


          सुनील कुमार गुप्ता 


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