सुनीता असीम

लगे रहना सभी तुम उस खुदा की सिर्फ खिदमत में।


कभी आने न देना कुछ कमी उसकी इबादत में।


***


कयामत है सितमगर है इबादत है कज़ा भी है।


दिवानों को मिले जो ग़म लुटे फिर तो मुहब्बत में।


***


करें आदर सभी का वो अगर संस्कार मिलते हैं।


मिलेंगे ये सभी में बस पिता मां से विरासत में।


***


बना देती किसी को तो मिटा देती किसी को है।


बदलते रंग देखे हैं जमाने ने सियासत में।


***


जवानों को नहीं परवाह होती जान की अपनी।


करें कुर्बान अपना सब वतन की वो हिफाजत में।


***


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511