सुनीता असीम

जो भूखे हैं ऐसे हजारों को देखो।


कभी ऐसे किस्मत के मारों को देखो।


 


बिगड़ते रहे हैं जो बन बनके अपने।


उबर डूबते उन विचारों को देखो।


 


सियासत में रेंगें सभी नाग बनके।


जहां वो रहें उन पिटारों को देखो।


 


भंवर को न देखो कज़ा से न डरना।


बचाएं तुम्हें उन किनारों को देखो।


 


जो अपने ही हाथों से घर तोड़ते हैं।


ज़रा नासमझ उन गंवारों को देखो।


 


सुनीता असीम


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