सुनीता असीम

मेरे पीछे मेरी बीबी पड़ी है।


लेगी गहने इसी जिद पे अड़ी है।


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न खाना और पानी भी मुझे दे।


जिधर देखूँ उधर सर पर खड़ी है।


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न सोने दे न रोने दे मुझे वो।


मुझे भेजे वो लानत भी बड़ी है।


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बचूं कैसे कोई मुझको बताए।


वो मुझको धूप सी लगती कड़ी है।


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 कि मैंने मान ली अब मांग उसकी।


 उसे दे दी अंगूठी नग जड़ी है।


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सुनीता असीम


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