सुनीता असीम

अपने जिनके रक़ीब होते हैं।


वो बड़े बदनसीब होते हैं।


 ***


चैन मिलता नहीं कभी उनको।


जाने कितने सलीब होते हैं।


***


सार रिश्तों का जो समझ जाते।


खास बनकर करीब होते हैं।


***


 रोज़ पढ़ते रहें रिसाले वो।


जो भी सच्चे अदीब होते हैं।


***


प्यार भरकर मिला करे झोली।


लोग वो खुशनसीब होते हैं।


***


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...