डा.नीलम

*संगीत*


 


शब्द मेरे बहा कर


बरसती रही बदलियाँ


बना के अक्षरों को


नाव कागज की


बहती रही नदियां


 


गीतों को बिन साज


गुनगुनाने लगी पवनियां


गजलों में प्रखर हो


दमकने लगी दामिनियां


 


धरा गगन के बीच


मुक्तक मोती से सजाने 


लगी बूँदनियां


नाद डमरू से बजाने 


लगी बिजलियाँ


 


क्षणिक कूक-सी क्षणिकाएं


रह-रह कूक रही कोयलिया


हाइकु-सी हर सूं महक रही


बगियन की कलियाँ


 


छमछम छंद की छनक 


छनकार रहीं बूँद बनी पैजनियां


अलंकार -सी धड़क रही


प्रकृति की रागिनियां।


 


        डा.नीलम


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