*ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-2
ठोंकत ताल कबहुँ बलवाना।
लागहिं किसुन लरत पहलवाना।।
लावहिं कबहुँ दुसेरि-पसेरी।
बाट-बटखरा हेरी-फेरी ।।
बहु-बहु लीला करहिं कन्हाई।
नाथ रहसि नहिं परे लखाई।।
पर जे परम भगत प्रभु आहीं।
लीला देइ अनंदइ ताहीं ।।
नाथ न नाथ नाथ अहँ दासा।
सेवहिं भगतन्ह नाथ उलासा।।
इक दिन बेचन फल तहँ आई।
नारी एक पुकार लगाई।।
सुनतै बोल किसुन तहँ आए।
अँजुरी भरि अनाज लइ धाए।।
पसरा गिर अनाज मग माहीं।
खाली हाथ नाथ तहँ जाहीं।।
सकल कामना पूरनकर्ता।
जनु पसारि कर लागहिं मँगता।।
बिनु अन दिए दोउ कर भरिगे।
नारी प्रभु-कर बहु फल दयिगे।।
महिमा अहहि नाथ बड़ भारी।
टोकरि रत्नन्ह भरे मुरारी ।।
दिवस एक यमलार्जुन- भंजक।
किसुन कन्हाई जग कै रच्छक।।
खेलत रहे कलिंदी-तीरा।
सँग बलदाऊ भ्रात अभीरा।।
तहँ तब पहुँचि रोहिनी माता।
लगीं बुलावन किसुन न भाता।।
पुनि-पुनि कहैं किसुन-बलदाऊ।
मोरे लाल सुनहु अब आऊ ।।
केहु नहिं सुनै पुकार रोहिनी।
आईं जसुमति लखि अस करनी।।
सोरठा-जसुमति करहिं गुहार,सुनहिं नहीं रामहिं-किसुन।
कइसे सुनैं पुकार,रहे खेल मा बहु मगन।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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