किसानों की समस्याएं
वह सब की भूख मिटाता है
खेतों में अन्न उगाता है
मेरे देश की है पहचान कृषक
फिर भी वह पिछड़ा जाता है
कभी महाजनों के मकड़जाल
कभी जमींदार का मायाजाल
सदियों से सहता पीर रहा
कर्जे में डूबा जाता है
यदि फसल उगाता खट-पिट कर
उसका न मूल्य मिल पाता है
सरकारी नियमों में उलझा
तकलीफ वह महती पाता है
उत्तम कोटि के खाद- बीज
उसको कभी मिल नहीं पाते हैं
है गरीब बड़ा स्वाभिमानी वह
व्यवस्था नहीं कर पाते हैं
कभी मानसून धोखा देता
जलस्तर भी होता नीचा
सिंचाई का रहता अभाव यहां
कैसे अच्छी हो फसल वहां
मिट्टी भी जैसे कभी रंग बदले
परेशानी नई बढ़ाती है
होता मिट्टी का क्षरण वहां
जहां फसलें बोई जाती है
पारंपरिक कृषि की विधियों पर
किसानों का है विश्वास अटल
अपनाते नहीं उपकरण हैं
लागत में धोखा खाते हैं
भंडारण की नहीं सुविधा
होती है सामने बड़ी दुविधा
बेचान फसल का करते हैं
मजबूरी दाम घटाती है
पूंजी की कमी और परिवहन
यह भी बड़ी बाधाएं हैं
जिनकी गिरफ्त में फंसा पड़ा
मेरा किसान बेचारा है
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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