नशा
नशा करो अध्यात्म का, अन्य नशा को त्याग।
यही नशा उत्कृष्ट है, इससे ही अनुराग।।
भाँग धतूरा मदिर सब, करते सत्यानाश।
इनसे मुखड़ा मोड़कर, चल ईश्वर के पास।।
मदिरा पी कर तुम कभी, बनना नहीं मदांध।
आध्यात्मिकता के नशे, से अपने को बाँध।।
ईश्वर के आनंद का, कोई नहीं विकल्प।
ईश्वर में ही लीनता, का लेना संकल्प।।
जो ईश्वर में रम गया, डूबा वही सदेह।
राम राम जपने लगा, बनकर जनक विदेह।।
धार्मिक हाला पी सदा, रहना सीखो मस्त।
लौकिक विषमय मदिर को, करते रहना पस्त।।
परम अलौकिक दिव्य रस, के ईश्वर भण्डार।
इसको पी कर रम सहज,बढ़ ईश्वर के द्वार।।
स्वयं विस्मरण के लिये, पकड़ ईश की बाँह।
धर्म रसायन पान ही, मन की अंतिम चाह।।
लौकिक नशे में धुत्त हो, गाली देते लोग।
ईश्वर रस के पान से, ईश्वर से ही योग।।
महा पुरुष मुनि सिद्धगण, किये धर्म का पान।
हो प्रसिद्ध संसार में, कहलाये भगवान।।
जिसको बनना ईश है, करे ईश- रसपान।
लौकिक मदिरा बोतलों, से बनते शैतान।।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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