*करते सभी हैं वादे*
करते सभी हैं वादे,
निभाते नहीं हैं लेकिन।
खाते बहुत सी कसमें,
उररते नहीं हैं लेकिन।
वादे निभाना मुश्किल,
कहना बहुत सरल है।
कसमों का क्या ठिकाना,
रुचिकर नहीं गरल है।
करना नहीं भरोसा,
संसार का नियम यह।
वादे बहुत हैं होते,
पूरे कभी न होते।
वादे-कसम के चक्कर,
को छोड़कर बढ़ो अब।
विश्वास कर स्वयं पर,
चलते रहो स्वयं अब।
आशा किया जो रोया,
पाया नहीं किसी से।
आशा किया जो खुद से,
रोया नहीं किसी से।
रोता वहीं है जिसको,
विश्वास है न खुद पर।
हँसता वही है जिसमें,
विश्वास है स्वयं पर।
विश्वास को जगाये,
चलता बना पथिक जो।
झुकती है सारी दुनिया ,
उस राहगीर पर।।
रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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