नूतन लाल साहू

चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


 


प्रभु ने कम भी दिया,तो क्या हुआ


कभी न करना, मलाल


वो रक्खे, जैसे तुम्हे


उसमे रह, खुशहाल


दुनिया तो,अब भी वही है


चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


पढ़ता रहता है,सत्य का


जो नियमित अध्याय


मां सरस्वती, उस शख्स का


करती हैं,सदा सहाय


मिल जाय सहारा,प्रभु नाम का


और नहीं, कुछ चाह


अब, रब खुद ही करेगा


बंदे का परवाह


सत्य को स्वीकारिये


चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


स्वर्ग नरक है, एक कल्पना


है,असत्य ये धाम


यही भुगतना पड़ेगा


अपने कर्मो का अंजाम


यह जीवन,इक युद्ध है


कभी जीत,तो कभी हार


हरि इच्छा, होत बलवान है


चरित्र निर्माण ही, सबसे बड़ा धन है


जिसने जाना, स्वयं को


वह साधक,हो जाता हैं


तरह तरह के,धर्म है


तरह तरह के है,संत


जैसा मन,वैसा मनुष्य


दर्पण है,यह संसार


लोग अपनी ही,छबि देखता


है,इसमें बारम्बार


जीवन के सस्पेंस को,कोई समझ न पाया


चरित्र निर्माण ही, सबसे बड़ा धन है


नूतन लाल साहू


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