सुमत का रथ सजा लेे
बदल नहीं सकते,अगर अकेला
दुनिया का दस्तूर
तो फिर उसको,क्यों नहीं
कर लेते, मंजूर
तैयारी रख,सफ़र की
बांध ले,सब सामान
न जाने कब,मौत का
आ जायेगा, फरमान
खुद पर,मत इतराइये
सुमत का रथ,सजा लेे
कल करे सो,आज कर
आज करे सो, अब
पल में, परलय होत है
बहुरी करेगा, कब
मांगता ही रहता है, रात दिन
धरती का, इंसान
इसीलिए,बहरे बन गया है
दीन बंधु भगवान
चनाअकेला, भाड़ नहीं फोड़ सकता है
सुमत का रथ,सजा लेे
मिल जाये,सहारा प्रभु का
और नहीं,कुछ चाह रखो
तब, रब खुद ही करेगा
बंदे का परवाह
पढ़ता रहता,सत्य का
नियमित जो अध्याय
मां सरस्वती,उस शख्स का
करती हैं,सदा सहाय
जीवन भर,उसका गणित
न समझा,इंसान
माता पिता और गुरुजन का
आशीष काम आयेगा
सुमत का रथ,सजा लेे
नूतन लाल साहू
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