सुबोध कुमार

काम बहुत थे सफर की शाम मुझे


पर फिर भी मैं मैसेज देखता रहा


 


हर टुडूंग की आवाज पर तुझे मैं


अपनी यादों में थोड़ा सहेजता रहा


 


जाकर बरामदे में किसी बहाने से


तेरी डीपी जूम करके देखता रहा


 


ना कोई फोन आया ना मैसेज तेरा


सफर में तेरा लास्ट सीन देखता रहा


 


          सुबोध कुमार


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511