दिल की हर मुश्किल का कोई इसमें हल मौजूद है
आप सबके सामने मेरी ग़ज़ल मौजूद है
जिसमें चाहो जाओ निकलो अपनी मनमानी करो
इन सियासतदानों को भी दल बदल मौजूद है
बस इसी इक बात से है मुतमइन यह ज़िंदगी
अक्स उसका सामने हर एक पल मौजूद है
उसकी ख़ुशबू से महकता है मेरा ज़ख़्मी जिगर
जिस्म में उस तीर का हर इक कँवल मौजूद है
हाथ दोनों के मिले लब पर तबस्सुम भी सजा
फिर भला क्यों दर्मियां अब भी जदल मौजूद है
जो बनाया था कभी दोनों ने मिल कर ख़्वाब में
आज भी यादों में अपनी वो महल मौजूद है
जब ग़ज़ल *साग़र* कही हमने नये अंदाज़ में
कुछ ही पल में देख ली उसकी नक़ल मौजूद है
🖋️विनय साग़र जायसवाल
मुतमइन -संतुष्ट , तृप्त
जदल-युद्ध ,कलह ,वाद-विवाद
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