डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-12


 


पुनि-पुनि सीष नवा हनुमाना।


कहा चाहुँ मैं पानी-दाना।।


    अब जदि मैं तव आयसु पाऊँ।


     तोरि-तोरि फल भरि हिक खाऊँ।।


सुनहु तात इहँ बहु रखवारा।


सकै न कोऊ इनहिं पछारा।।


     मातु खाउँ मैं फल चुनि मीठा।


     कहि नहिं सकत मोंहि कोउ डीठा।


मारि-पछारि सभें हनुमाना।


खाए रुचिकर फल बहु नाना।।


     सभ उखारि फेंकैं तरु उत-इत।


     करहिं उपद्रव उपबन समुचित।।


रावन पास जाइ इक दूता।


कह प्रभु बानर एक अनूपा।।


     बन असोक उजारि तरु फ़ेंकहि।


      खाइ-खाइ फल सबहिं गुरेजहि।।


जे केहु बीर गवा तिसु आगे।


मारि-गिराइ तुरत फिर भागे।।


      उद्भट बीर दसानन भेजा।


       मारि तिनहिं कपि पुनः गरेजा।।


भेजा निज सुत अच्छ कुमारा।


ताहि संग बहु भट्ट अपारा।।


     देखि तिनहिं उखारि इक बिटपा।


      फेंका कपि अच्छय गिर तड़पा।।


मारि गिरायेसि अछय कुमारा।


रपटत सबहिं कीन्ह निपटारा।।


    मेघनाद कहँ तहँ पुनि पठवा।


    कह मारउ नहिं लावहु बँधवा।।


देखन मैं चाहूँ तेहि कपि के।


केकर दूतइ आवा बनि के।।


    इंद्रजीत सुनि बध निज भ्राता।


    होइ बिकल क्रोधित तहँ जाता।।


लखि जोधा आवत बलवाना।


तरु गहि कटकटाइ हनुमाना।।


    कीन्ह बिरथ लंकेस-कुमारा।


    मारि मुष्टिका भटन्ह पछारा।।


दोहा-मेघनाद नहिं सहि सका, हनुमत मुष्टि-प्रहार।


        मूर्छित हो तब गिर परा, तहँ भुइँ होइ निढार।।


                       डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


 


 


 तेरहवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-6


 


बरस-काल एक जब बीता।


ब्रह्मा आए ब्रजहिं अभीता।।


 लखतै सभ गोपिन्ह अरु बछरू।


खात-पियत रह उछरू-उछरू।।


    भए अचम्भित भरमि अपारा।


     लखहिं सबहिं वै बरम्बारा।।


किसुन कै माया समुझि न पावैं।


पुनि-पुनि निज माया सुधि लावैं।।


     असली-नकली-भेद न समुझहिं।


      निज करनी सुधि कइ-कइ सकुचहिं।।


जदपि अजन्मा ब्रह्मा आहीं।


किसुनहिं माया महँ भरमाहीं।।


     भरी निसा-तम कुहरा नाईं।


     जोति जुगुनु नहिं दिवा लखाईं।।


वैसै छुद्र पुरुष कै माया।


कबहुँ न महापुरुष भरमाया।।


    तेहि अवसर तब ब्रह्मा लखऊ।


बछरू-गोप कृष्न-छबि धरऊ।।


   सबहिं के सबहिं पितम्बरधारी।


   सजलइ जलद स्याम बनवारी।।


चक्रइ-संख,गदा अरु पद्मा।


होइ चतुर्भुज बिधिहिं सुधर्मा।।


    सिर पै मुकुट,कान महँ कुंडल।


    पहिनि हार बनमाला भल-भल।।


बछस्थल पै रेखा सुबरन।


बाजूबंद बाहँ अरु कंगन।।


   चरन कड़ा,नूपुर बड़ सोहै।


    कमर-करधनी मुनरी मोहै।।


नख-सिख कोमल अंगहिं सबहीं।


तुलसी माला धारन रहहीं।।


     चितवन तिनहिं नैन रतनारे।


     मधु मुस्कान अधर दुइ धारे।।


दोहा-लखि के ब्रह्मा दूसरइ,अचरज ब्रह्मा होय।


        नाचत-गावत अपर जे,पूजहिं देवहिं सोय।।


       अणिमा-महिमा तें घिरे,बिद्या-माया-सिद्ध।


        महा तत्व चौबीस लइ, ब्रह्मा दूजा बिद्ध।


                     डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


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