डॉ0 निर्मला शर्मा

सुप्रभात


नव प्रभात आयो हुई भोर


चली यामिनी आँचल छोड़


नीलगगन में हुई है हलचल


तारे चले गगन को छोड़


शीतल चाँद की शीतलता से


सिहर उठी प्यारी सी भोर


नूतन गीत गूँजते नभ में


चले भास्कर आसन छोड़


सप्त अश्व दौड़े जब रथ में


छोड़ें स्वर्णधूलि सब ओर


प्रथम किरण पड़े वसुधा पर 


फैले उजियारा सब ओर


चाँदी की उजली जाली सी


फैली है चादर चहुँ ओर


कलरव कुंजन आरती वन्दन


स्वर लहरियाँ बिखरी हर ओर


प्रातः वन्दन करूँ नाथ मैं


स्वीकारो नमन प्रभु मोर।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


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