डॉ० रामबली मिश्र

प्रेम दीवाना


 


अति मस्ताना सहज सुहाना।


प्रेम सयाना अति बलवाना।।


 


सदा विशाला भव्य कृपाला।


सहनशील अति भोलाभाला।।


 


परम महाना अति मधु ज्ञाना।


अमृतमय मादक बहु माना।।


 


श्रद्धास्पद अतीव सुखकारी।


परोपकारी हृदयविहारी ।।


 


कमल नयन सुंदर मुख-आकृति।


रचनाकार विराट सुसंस्कृति।।


 


शुभकामी योगी प्रियदर्शी।


महा-आतमा सुजन महर्षी।।


 


दीवाना मानव सुखदाता।


प्रीति रसायनशास्त्र विधाता।।


 


पावन दिव्य कर्म शुभदायक।


सहज सरस रस सुहृद सहायक।।


 


पीताम्बरमय कृष्ण मुरारी।


गोपी-प्रियतम अति मनहारी।।


 


चलो प्रेम! गोपबाला घर ।


बुला रही है प्रिया तुझे हर।।


 


तिलक लगाये स्व-मस्तक पर।


मुस्काते चल प्रेयसि के घर।।


 


देख प्रेयसी परम सुहानी।


बोल रही है मधुरी वानी।।


 


देख नयन में प्रेम नीर है।


गजगामिनि गंभीर धीर है।।


 


ले बाहों में प्रिय सहलाओ।


प्रेम गंग में खूब नहाओ।।


 


डूबो प्रिय के अंतःपुर में।


सदा बसो प्रेयसि के उर में।।


 


प्रेयसि जमकर नृत्य करेगी।


राधा जैसी स्तुत्य बनेगी।।


 


प्रेयसि अनुपम दिव्य मनोरम।


डाल प्रेम रंग सर्वोत्तम।।


 


सारा अंग भिगो देना है।


लाल चुनर पहना देना है।।


 


प्रेयसि का घर पावन धामा।


संग रहो बन राधेश्यामा।।


 


यही प्रेममय दिव्य फकीरी।


प्रेम रंग की खेलो होरी।।


 


प्रेम प्रचारक बनकर चलना।


सदा प्रेयसी संग विचरना।।


 


निमिष मात्र के लिये न त्यागो।


सदा रूपसी में ही जागो।।


 


हाथ पकड़कर सदा चूमना।


दिल में बैठे सतत मचलना।।


 


नदी किनारे घूम थिरकना।


बाजू में प्रेयसि ले चलना।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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