निशा अतुल्य

जगदीश्वर 


9.11.2020


 


 


अर्धनारीश्वर हे योगेश्वर 


करूँ प्रणाम बारम्बार


दे दो हमको ज्ञान की ज्योति


हरो सकल अंधकार ।


 


प्रेम रोग लगाया पहले 


दिया कर्म योग का ज्ञान


विरह अगन होती है क्या 


हुआ सहज ही भान ।


 


राधा राधा जो भी पुकारे


तुम दौड़ आते हो


बिगड़े काम प्रभु मेरे 


तुम ही बनाते हो ।


 


पूजन अर्चन कुछ न जानू


साँसों में तुम हो


कान्हा कान्हा रटती रहती


भव तारण तुम हो ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


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