नूतन लाल साहू

उम्मीद


 


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


क्योंकि सूरज डूबने के पश्चात ही


सबेरा होता है


जैसा मनोहर मेरा देश है


वैसा ही मधुर संदेश है


तूफान वर्षा बाढ़ संकट में


विश्वास ही आशा दायिनी होता है


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


कठिन तपस्या करके कोयल


इतना सुमधुर सुर पाया


उत्साह और उमंग के संचार से


युग युग का आलस भागा


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


दैव दैव तो आलसी पुकारे


प्रश्न उठा करता है मन में


बड़े भाग्य मानुष तन पाया


कैसे तुने जीवन में


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


देख कहीं कोई तरू सूखा


द्रवित हुई होगी मन में


एक दिवस इस तरू के ऊपर


हरियाली लहराती रही होगी


इस उत्तर से आई होगी निश्चित


शांति नहीं तेरे मन में


याद करो तुम उस पल को


अर्द्ध रात्रि में गौतम निकले थे घर से


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


क्योंकि सूरज डूबने के पश्चात ही


सबेरा होता है


नूतन लाल साहू


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...