डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 षष्टम चरण (श्रीरामचरितबखान)-4

अस सुनि दसकंधर घबराना।

उठि कह तनि तुम्ह मोंहि बताना।

     का बाँधे ऊ उदधि-नदीसा।

     संपति सिंधुहिं,जलधि बरीसा।।

बनहिं-पयोधि,तोय-निधि बाँधा।

मोंहि बताउ नीर-निधि साधा।।

      तब खिसियान बिहँसि गृह गयऊ।

      भय भुलाइ जनु कछु नहिं भयऊ।।

बाँधि पयोधि राम इहँ आयो।

सुनि मंदोदरि चित घबरायो।।

      रावन-कर गहि ला निज गेहू।

       कहा नाथ रखु रामहिं नेहू।।

कीजै नाथ बयरु तिन्ह लोंगा।

बल-बुधि-तेज रहै जब जोगा।

       उदितै चंद्र खदोत न सोहै।

        रबि-प्रकास महँ ससि नहिं मोहै।।

स्वामी तुम्ह खद्योत समाना।

दिनकर-तेज राम भगवाना।।

       मधु-कैटभ रघुबीर सँहारे।

       हिरनकसिपु-हिरनाछहिं मारे।।

बामन-रूप धारि रघुबीरा।

बाँध्यो नाथ बलिहिं रनधीरा।।

    सहसबाहु प्रभु रामहिं मारे।

    परसुराम बनि धरनि पधारे।।

सो प्रभु हरन धरनि कै भारा।

आयो जगत लेइ अवतारा।।

     तेहिं सँग नाथ बिरोध न कीजै।

      हठ परिहरि तिन्ह सीता दीजै।।

काल-करम-जिव राम के हाथहिं।

तिसु बिरोध तुम्ह सोह न नाथहिं।।

      तजि निज क्रोध सौंपि सुत राजहिं।

       करउ गमन-बन भजु तहँ रामहिं।।

दोहा-संत बचन अस कहत अहँ, सुनहु नाथ धरि ध्यान।

        चौथेपन नृप जाइ बन,लहहिं परम सुख ग्यान ।।

                    डॉ0हरि नाथ मिश्र

                     9919446372

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