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डॉ0 हरि नाथ मिश्र
ग़ज़ल
धीरे-धीरे
हुआ इश्क़ का जब असर धीरे-धीरे।
गयी सध ग़ज़ल की बहर धीरे-धीरे।।
नहीं काटे कटतीं थीं अब तक जो रातें।
लगीं उनकी होने सहर धीरे-धीरे।।
गगन में सितारे जो लगते थे धूमिल।
गयी ज्योति उनकी निखर धीरे-धीरे।।
तकदीर मेरी जो बिगड़ी थी अब-तक।
गयी पा उन्हें अब सँवर धीरे-धीरे।।
रहा प्यार अब-तक जो गुमनाम मेरा।
बनी उसकी अच्छी ख़बर धीरे-धीरे।।
बढ़ा इश्क़ का अब असर इस क़दर के।
सभी गाँव होंगे,नगर धीरे-धीरे।।
मलिन बस्तियों की जो दुर्गति थी होती।
जाएगी दशा अब सुधर धीरे-धीरे।।
अगर दीप प्यारा यूँ जलता रहेगा।
जाएगा ये तूफाँ ठहर धीरे-धीरे।।
© डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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