डॉ0 निर्मला शर्मा

 मंहगाई का ज़ोर


जहाँ देखो वहाँ सुनाई देता है 

इतराती  

मंहगाई का शोर

बाज़ार में नित बढ़ती हैं कीमतें

चलता है न हमारा कोई ज़ोर

खाद्यान्न ,कपड़े ,मकान या

दैनिक उपभोग की हो वस्तुएँ

टैक्स 

तो बढ़ता जाता है नित

पर कम न होती कभी कीमतें

गरीब की झोली में केवल

सन्तोष ही क्यों ? 

आबाद है

धनाढ़्य वर्ग तो विपुल

 सम्पत्ति में भी नासाज़ है

मंहगाई ने तोड़ दी है कमर

उछलता है पैसा

 न छोड़ी कसर

अब तो त्योहार भी हुए फीके

 मगर

उत्साह कभी न होगा कम

हम भारतीय खुशियाँ ढूढ़ें

हरदम

छोटी छोटी बातों से ही

जीवन रूपी किताबों से ही

डटकर सामना कर पाते हैं

मंहगाई को आखिर 

हरा ही जाते हैं


डॉ0 निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

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