डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 त्रिपदियाँ

भोली सूरत पे मत जाना,

इसका कोई नहीं ठिकाना।

मालिक,इससे सदा बचाना।।

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कलियों में आते  तरुणाई,

भौरों ने गुंजन-धुन गाई।

मधु-रस चख कर लें अँगड़ाई।।

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दुर्जन की संगति मत करना,

तुमको कष्ट भले हो सहना।

सुनो,नीति का है यह कहना।।

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संत-समागम सुख अति देता,

मूल्य नहीं बदले में लेता।

संत-समागम सुबुधि-प्रणेता।।

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सुंदर सोच,कर्म नित शुभकर,

ऐसी प्रकृति सदा हो हितकर।

टिका विश्व शुचि चिंतन बल पर।।

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राजनीति का खेल निराला,

आज शत्रु कल मीत हो आला।

पड़े न गठबंधन से पाला ।।

        © डॉ0 हरि नाथ मिश्र

            9919446372

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