डॉ0हरि नाथ मिश्र

*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17 सुनि रावन-मुख प्रभु-अपमाना। भवा क्रुद्ध अंगद बलवाना।। सुनै जे निंदा रामहिं ध्याना। पापी-मूढ़ होय अग्याना।। कटकटाइ पटका कपि कुंजर। भुइँ पे दोउ भुज तुरत धुरंधर।। डगमगाय तब धरनी लागे। ढुलमुल होत सभासद भागे।। बहन लगी मारुत जनु बेगहिं। रावन-मुकुटहिं इत-उत फेंकहिं।। पवन बेगि रावन भुइँ गिरऊ। तासु मुकुट खंडित हो परऊ।। कछुक उठाइ रावन सिर धरा। कछुक लुढ़क अंगद-पद पसरा।। अंगद तिनहिं राम पहँ झटका। तिनहिं उछारि देइ बहु फटका।। आवत तिनहिं देखि कपि भागहिं। उल्का-पात दिनहिं जनु लागहिं।। बज्र-बान जनु रावन छोड़ा। भेजा तिनहिं इधर मुख मोड़ा।। अस अनुमान करन कपि लागे। तब प्रभु बिहँसि जाइ तिन्ह आगे।। कह नहिं कोऊ राहू-केतू। रावन-बानन्ह नहिं संकेतू।। रावन-मुकुटहिं अंगद फेंका। कौतुक बस तुम्ह जान अनेका।। तब हनुमत झट उछरि-लपकि के। धरे निकट प्रभु तिन्ह गहि-गहि के।। कौतुक जानि लखहिं कपि-भालू। रबी-प्रकास मानि हर्षालू।। दोहा-रावन सबहिं बुलाइ के,कह कपि पकरउ धाइ। पकरि ताहि तुमहीं सबन्ह,मारउ अबहिं गिराइ।। डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

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