सुनीता उपाध्याय असीम

 दिल मेरा बस वो दुखाने आए।

जख्म पर मरहम लगाने आए।

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 घी उन्होंने आग में था डाला।

आग जो सारे बुझाने आए।

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जिन्दगी भर जो लगे दुश्मन से।

मुश्किलों से वो बचाने आए।

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जल रही थी अग्नि जब विरहा की।

मित्र भी मुझको रुलाने आए।

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सामने मेरे वो चले आए जब।

कर लिए जितने बहाने आए।

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अश्क आंखों से पिए थे मेरे।

जब मेरा दिल वो लुभाने आए।

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 कान्हा कर दो महर अब हमपर।

हम तुझी पर दिल लुटाने आए।

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सामने तेरे झुका कर सर को।

सब खड़े हैं जो दिवाने आए।

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क्यूँ सुनीता से हुए हो रूठे।

गा लिए जितने तराने आए।

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सुनीता उपाध्याय असीम

७/१२/२०२०

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