अर्चना द्विवेदी

 अश्क़ सुता के ज़ाहिर करते

नाज़ुक दिल जज़्बात।

लोक प्रथा के कारण बाबुल

दिया अजब सौगात।।


नाजों से पाला पोसा यह,

कहकर मैं हूँ लाल।

तेरी बाहों के झूले में,

बीते सुखमय साल।

गठबंधन अनमोल घड़ी फिर,

रोये क्यों माँ तात??


आकुल मन से खूब निहारा,

फुलवारी घर द्वार।

छूट रहा मेरी यादों का,

अनुपम यह संसार।

जुड़े नेह में दो पावन दिल

लेकर फेरे सात।।


बाप बिचारा किया पराया,

करके कन्यादान।

दोनों कुल का मान बढ़ें यह,

मन में है अरमान।

स्वप्न सजीले संग सुनहरे,

जीवन की शुरुआत।।

              अर्चना द्विवेदी

                 अयोध्या 

                

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