सुनीता असीम

 हुआ जो साथ मेरे हादसा था।

वो जीवन का मेरे फ़लसफ़ा था।

*********

खोई थी नींद आँखों से कहीं पर।

औ दिल का चैन भी तो लापता था।

********

तेरे दरबार  पर  नज़रें   लगी थीं।

कहां पट तब तलक तेरा खुला था।

********

मगर दीदार  भी था फक्त मुश्किल।

तेरी यादों का केवल सिलसिला था।

*******

लगी थी प्यास सूखे कंठ में   तब।

न कोई ताल था पर जल मिला था।

*******

भरोसा हो गया तेरी महर पर।

कृपा तेरी मिली तन भीगता था।

*******

बरसते आंख से आंसू न रुकते।

कोई था पुण्य जो ऐसे फला था।

*******

रज़ा उनकी न इसमें कैसे माने।

उन्हीं की ओर मन ये भागता था।

*******

सखी है कृष्ण की अब तो सुनीता।

रहा अन्तिम ये उसका फैसला था।

*******

सुनीता असीम

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...