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नूतन लाल साहू
बाल मजदूरी, छीनती बचपना
हम दो हमारे दो
शासन का हैं सुझाव
पर यह कैसी लाचारी
बढ़ रही है संख्या,अनाप शनाप
करे गुजारा किस तरह
नहीं कमाई खाश
आज यहां तो कल वहां
किये बहुत से काम
पंद्रह दिवस जला बस चूल्हा
मेहनत हुई महीने की
मजबूरी ने दिखा दी
बच्चों को मजदूरी की राह
बाल मजदूरी छीनती बचपना
इक्कीसवीं सदी में है,यह कैसी विडंबना
सेहत बने,पढ़ाई हो
ताकि आगे नहीं कठिनाई हो
मिले संतुलित आहार,खूब स्वस्थ रहें
पढ़े लिखे,प्रसन्न मस्त रहें
सूखी जीवन की जब तैयारी है
तब बच्चों के सीने में गम ही गम हैं
आंख नम करके सितम ढा रहा है
जाने क्यों तुम,समझ न पा रहा है
झांक कर देख तो, बच्चों के मन मंदिर को
उसके अंदर भी इक विधाता है
सोचो अगर दुनियां में कानून न होता
बोलो फिर क्या होता
बाल मजदूरी, छीनती बचपना
इक्कीसवीं सदी में है,यह कैसी विडंबना
नूतन लाल साहू
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