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डॉ० रामबली मिश्र
*दरिद्रों की बस्ती...(ग़ज़ल)*
दरिद्रों की बस्ती बहुत दूर रखना।
दूरी बनाकर बहुत दूर रहना।।
मन में बहुत पाप रहता है इनके।
दूरी बनाकर सँभलकर विचरना।।
ये खा कर भी पत्तल में करते हैं छेदा।
इन्हें कुछ खिलाने की कोशिश न करना।।
धोखे की दुनिया के ये पालतू हैं।
विश्वास करने का साहस न करना।।
एतबार करना नहीं बुद्धिमानी।
एतबार करने की इच्छा न रखना।।
टहलते इधर से उधर पेट खातिर ।
कुत्ते से कम इनका अंकन न करना।।
ईर्ष्या की ज्वाला इन्हें है सुहाती।
जलता हुआ पिण्ड इनको समझना।।
नफरत भरी जिंदगी से ये खुश हैं।
ऐसे दरिद्रों से बचकर निकलना।।
नहीं सुख दिया है विधाता ने इनको।
झरते ये झर-झर बने दुःख का झरना।।
नहीं जल है निर्मल, अशुद्धा-अपेया।।
दरिद्रों की दरिया किनारे न रहना।।
बड़े पातकी होते ये सब दरिद्री।
इनके बगल से कभी मत गुजरना।।
छाया ये देते बहुत कष्टदायी ।
इनसे तू दूरी बनाये ही रहना ।
डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
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