डॉ० रामबली मिश्र

*चोरों की बस्ती में...(ग़ज़ल)* चोरों की बस्ती में घर ले लिया है। संकट को न्योता स्वयं दे दिया है।। नहीं जानता था ये चोरकट हैं इतने। पसीना बहाकर लहू दे दिया है।। पूछा न समझा कि बस्ती है कैसी? अज्ञानता में ये क्या कर दिया है?? दमड़ी की हड़िया भी लेनी अगर है। मानव ने ठोका ,बजाकर लिया है।। हुई चूक कैसे नहीं कुछ पता है। बिना जाने कैसे ये क्या हो गया है?? पछतावा होता बहुत है समझ कर। पछतावा से किसको क्या मिल गया है?? उड़ी चैन की नींद दिन-रैन जगना। चोरों से बचना कठिन हो गया है।। क्या-क्या करे बंद कमरे के भीतर। बाहर का सब चट-सफा हो गया है।। झाड़ू तक बचती नहीं यदि है बाहर। गैया का गोबर दफा हो गया है।। चोरों की बस्ती का मत पूछ हालत। अपना है उतना ही जो बच गया है।। रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

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