डा. नीलम

*शीत दिवस* भोर कोहरे से ढकी शीत की लरजन लिए दे रही संदेश जागो ढल गई है रात प्रिय क्या हुआ जो सूरज के चूल्हे की आंच मद्धम रही अंधेरी रात तो फिर भी पटल से सरकती रही रात भर ओस बरसात-सी बरसती रही ठिठुरते चमन में कलियां फिर भी महकती रहीं बरफ के देश से बहकर हवाएं आती रहीं भेदकर दीवारें भित्तियों को थर्राती रहीं क्या हुआ गर मौसम में आग नहीं कर कसरत के जिस्म में तो आग रही क्या हुआ जो....... डा. नीलम

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