डॉ० रामबली मिश्र

 *साथ*


साथ निभाने का वादा कर ।

दिल से प्रेम जरा ज्यादा कर।।


प्रीति करो मन से आजीवन।।

अर्पित कर दो अपना तन-मन।।


अति मनमोहक लगो सर्वदा।

बस नैनन में बने दिव्यदा।। 


कामधेनु बन दुग्ध पिलाओ।

प्रेमामृत रस में नहलाओ।।


शुभश्री बनकर आ जाना है।

प्रिय के दिल में छा जाना है।।


प्रेम पिला कर मस्त बनाना।

अपना पावन रूप दिखाना।।


छलके आँसू सदा प्रीति के।

पड़े कर्ण में गूँज गीत के।।


पंछी बनकर कलरव होगा।

प्रेम मगन हर अवयव होगा।।


बिल्कुल दोनों एक बनेंगे।

सदा एक रस एक रहेंगे।।


दोनों एकाकार दिखेंगे।

खुद खुद को साकार करेंगे।।


अंतःपुर में ही रहना है।

बनकर स्नेह सतत बहना है।।


प्यारे का दिल नहीं दुखाना।

प्रिय प्यारे का दिल बहलाना ।।


महकाना मधु बोल बोलकर।

मुस्काना प्रिय हॄदय खोलकर।।


बाहर कभी नहीं जाना है।

कहीं नहीं भीतर आना है।।


तरसाना मत मेरे प्यारे।

तुम्हीं बनो नित प्रियतम न्यारे।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



*विनम्रता*


1-यह दैवी संपदा है।


2-यह नैसर्गिक गुण है।


3-यह आत्मीयता की जननी है।


4-यह प्रेमत्व को बढ़ावा देती है।


5-यह शांति रस से ओत-प्रोत है।


6-यह विद्या माँ की कृपा से प्राप्त होती है।


7-यह अध्यात्म की ओर संकेत देती है।


8-यह सबको नहीं मिलती।


9-यह मूल्यवान होती है।


10-यह सज्जनता का लक्षण है।


11-विशाल हृदय में यह पायी जाती है।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुर

9838453801

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