विनय साग़र जासयवाल

दोहे -सर्दी और सूरज 1. सर्दी के मारे बढ़ी , सूरज की औकात ।। हर कोई ही कर रहा,बस उस से ही बात ।। 2. सूरज सूरज कर रहा ,देखो सकल समाज । चंदा राजा जा रहे , सोंप उन्हें अब राज।। 3. निकलो सूरज देवता , लेकर तेज अपार । दर्शन दे कर तुम करो ,सर्दी से उद्धार ।। 4. जाड़े में मन जीतता ,सूरज का व्यवहार । नित्य सवेरे जाग कर ,बाँटे स्वर्णिम प्यार ।। 5. इस सर्दी में है यही ,सबकी एक पुकार। सूर्य देव आकर करो , हम सब पर उपकार ।। 6. जाड़े में ऐसी पड़ी , इस मौसम की मार ।। देख कुहासा हो गया ,सूरज भी बीमार ।। 7. सुबह सवेरे आ गई ,बादल की बारात । सूरज की तब गिर गई , क्षण भर में औकात ।। 🖋️विनय साग़र जासयवाल 16/12/2020

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