सुनीता असीम

 भरी आंखें मगर रोने न पाए।

सपन तेरे कभी सजने न पाए।

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विरह का योग प्रबल इतना था के।

सिकुड़ तन ये गया पर मरने न पाए।

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बड़ा था वेग मेरे आंसुओं का।

की हमने कोशिशें थमने न पाए।

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निगाहे यार का हम थे निशाना।

रहे जिन्ह़ार हम लुटने न पाए।

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लुटे बेमोल मन के भाव सारे।

कि मोती इश्क के बहने न पाए।

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कन्हैया हो सुनीता के अगर तुम।

कहो वो बात हम कहने न पाए।

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सुनीता असीम

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