डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *त्रिपदियाँ*

देव-भूमि पर विपदा आई,

संभव नहीं हानि-भरपाई।

कोप प्रकृति का है यह भाई।।

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पिघल ग्लेशियर हुआ प्रवाहित,

नदियों में घर हुए समाहित ।

हुए सभी जन हतोत्साहित।।

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प्रकृति संतुलन को है कहती,

मनुज-सोच है बहुत फितरती।

भौतिक-सुख उद्देश्य समझती।।

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ऐसी सोच बदलनी होगी,

प्रकृति की रक्षा करनी होगी।

सुख-सुविधा कम रखनी होगी।।

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वन-संरक्षण ही ध्येय रहे,

पर्वत-सरिता से नेह रहे।

तभी सुरक्षित भव-गेह रहे।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

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