निशा अतुल्य

 बसंत

12.2.2021

हाइकु


खोल नयन

देखे बसंत मुस्काय

उर्जित धरा।


कलियाँ खिली

धीरे से फूल बनी

हँसती धरा।


भँवर आए

मधुर राग सुनाए

कली मुस्काई ।


बाण चलाए

काम,रति हर्षाए 

उन्माद छाया ।


प्रेम की ऋतु

प्रणय निवेदन 

करें  हैं सभी ।


हैं ऋतुराज 

बसंत सुकुमार

हर्षित है मन ।


भूल सबको

अब ढूंढ स्वयं को

कुछ न यहाँ ।


हो आल्हादित

कर मन शृंगार 

हो सुवासित ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

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