सुनीता असीम

 चोट नहीं अब खानी है।

मरहम सिर्फ लगानी है।

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बदरा विरहा भड़काते।

कुदरत की शैतानी है।

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उन बिना सांस नहीं आती।

जीवन  भी   बेमानी    है।

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अपना समझूँ इस तन को।

ये   मेरी  नादानी      है।

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प्रेम करूँ केशव से बस।

दुनिया आनी जानी है।

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माधव मुझको अपना लें।

ये  ही  मन  में  ठानी है।

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तुममें मैं मिल जाऊं यूँ।

सागर  बूँद समानी  है।

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सुनीता असीम

३/२/२०२१

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